क्या है मुझमें....???
लोग कितनी आसानी से कहते है...कि क्या है मुझमें....???
मैं एक "बहन" हूँ.."बेटी" हूँ... "आबरू-ए-हया" है मुझमें...!!!
जिसे "चाहा"... तो ताउम्र चाहा उसे ही...
कभी "बेवफा" ना होने वाली "वफ़ा" है मुझमें..!!!
रोज़ गिरकर भी... फिर से मुक्कमल खड़ी हूँ..
हौसलों का वो पूरा "आसमां" है मुझमें...!!!
खुद से पहले "अपनो" की फिक्र रहती है...
माँ सी "करुणा"..."ममता"..."परवाह" है मुझमे...!!
हाँ..!! टूट के बिखरुं... तो "रो" पड़ती हूँ कभी कभी...
आंसुओं का तो पूरा "दरिया" है मुझमे...!!!
एक ये "दुनिया"... जो मोह्हबत में बिछी जाएं है मेरी...
एक वो "शख़्श"... जो मुझसे ही "खफा" है मुझमे..!!
"दुश्मनों" में भी मेरा "ज़िक्र" है अक्सर...
कोई तो बात दुनिया से "जुदा" है मुझमें...!!!
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